आह कहो या वाह | दोहा छन्द | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

दोहा छन्द स्नेह लुटाते फिर रहे,निज की नहिं परवाह,मानवता कहती यही,आह कहो या वाह।1। जीवन शैली मिट रही,ढूँढें नये रिवाज,अधुनातन की दौड़ में,गिरवी रखते लाज।2। फैशन के इस दौर में,धर्म-शर्म … Read More

कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा | इन्द्रेश भदौरिया | Awadhi Poetry

विश्व पर्यावरण दिवस पर – कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा। घर के भराँव छपरा छानी हेराने,नहीं रहिं ग़इं अंगऩइया कटैं बिरवा।कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा। जंगल काटि-काटि म़उजै मारत,सूखि परे … Read More

आ जा रे गौरैया सुन ले |हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

आ जा रे गौरैया सुन ले। आ जा रे गौरैया सुन ले,तुझको पास बुलाऊॅ।बैठ हथेली में तू मेरे,दाना तुझे खिलाऊॅ।1। दाना खाकर मन भर जाए,पानी तुझे पिलाऊॅगा,फुदक-फुदक तू ऑगन भर … Read More

२ जून की रोटी | दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

२ जून की रोटी सारा दिन,धूप ओढ़कर,मज़दूरी जब होती ।तब जाकर के खानें को,दो जून की रोटी मिलती।सिर का पसीना बहते-बहते,जब पांवों तक आ जाता।पांच बजे के बाद में उसको,कुछ … Read More

कवि मन की व्यथा | डाॅ बी के वर्मा ‘शैदी’

कवि मन की व्यथालिखिबे कूँ अब कवित्त, होत नायं तनिक चित्त,लिखें कौन के निमित्त? नाक-भौं सिकोरी है।श्रोता मिल सकत नायं, काहू पै बखत नायं,बैठिबे कौ ठौर काँयं? टाट है न … Read More

क्रोधाद्भवति सम्मोह: | सम्पूर्णानंद मिश्र

नियंत्रण होनाचाहिए क्रोध पर क्रोध की कोख सेमूढ़ता जन्मती है मूढ़ता तब तक शांत नहीं होती हैजब तक बुद्धि नाश न हो जाय और बुद्धिनाश सेमनुष्य अपने स्थान से च्युत … Read More

मॉ की याद बहुत आती है | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

मॉ की याद बहुत आती है,आकर मुझे रुला जाती है। तब तो इतना ज्ञान नहीं था,शर्म नहीं अभिमान नहीं था।सूखे – गीले जैसे भी थे,मैं कोई भगवान नहीं था।बड़े चाव … Read More

दुर्मिल सवैया | हनुमान कृपा कर कष्ट हरो | बाबा कल्पनेश

दुर्मिल सवैया विधान-112×8 हनुमान कृपा कर कष्ट हरो , लकवा मन में अति पीर भरे।असहाय दुखी दिन दून हुआ , लख लें दृग में अति नीर भरे।।तुमसे बलवान नहीं जग … Read More

तुमने प्रियवर समझा होता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

इन अधरों की प्यास कभी,तुमने प्रियवर समझा होता।मृदुल तुम्हारी अलकों में,मेरा हाथ महकता होता।टेक। मन का भॅवरा खो जाता,बलखाती तेरी ऑखों में।कदम भटकते ही रहते,नित निर्जन सूनी राहों में।सॅझवाती का … Read More

श्रमिक दिवस पर कविता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश

श्रम- स्वेद-कण से वह नहाता।सब धूप-छॉव भी सह जाता।।निज की इच्छा नहीं बताता।हॅस कर सबका भार उठाता। धन्य मनुज मजदूर कहाता।मस्त मुदित मन साथ निभाता।।सदा सृजन रत उनको देखा।लुप्त हाथ … Read More

मतदाता जागो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

बजी दुन्दुभी फिर चुनाव की,मतदाता जागो।संविधान सम्मत अपना तुम,सारा हक मॉगो।टेक। राजनीति के सफल खिलाड़ी,ऑसू भी घड़ियाली हैं,खद्दर पहन बने छैला ये,बॉट रहे हरियाली हैं।नहीं तुम्हारी चिन्ता इनको,सीमा तुम लॉघो।बजी … Read More

ज़िन्दगी आसान तो भी नही थी | पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’

ज़िन्दगी आसान तो भी नही थी।लिखती रहीफाड़ती रहीबहुत सारे शब्द हवाओं में उड़े।जरूर बतियाए होंगे मेरे बारे में। वो चिमनी की काॅंपती लौ भीकुछ तो सोचती रही होगी,जब उसको हाथों … Read More

मंगलमय संवत्सर होगा | नये वर्ष का अभिनन्दन | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

1.मंगलमय संवत्सर होगा मंगलमय संवत्सर होगा,स्नेह लुटाता दिनकर होगा।पुलक थिरकती कण-कण धरती,मधुमय जीवन रूचिकर होगा।टेक। शस्य-श्यामला पावन भू पर,बासन्तिक अनुराग मिलेगा,कोंपल-कोंपल कलिका महके,मलयज फाग-सुहाग मिलेगा।वन-उपवन नव फुनगी महके,गीत बसन्ती मधु … Read More

होली गीत : लाल हरा रंग नीला पीला,लेकर आई होली |दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

होली गीत लाल हरा रंग नीला पीला,लेकर आई होली।होली गीत सुनाती आई,फगुहारों की टोली।ढोल,मंजीरा,झांझ लिए,सब होली गीत सुनावें।सुंदर-सुंदर गीत सभी के,मन को खूब लुभावें।सब के सब मस्ती में डूबे,छाने भांग … Read More

ऑचल बहॅक रहा | नींद नयन ना आई | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

माहिया/टप्पा छन्द1.ऑचल बहॅक रहा देखो आग लगी है,चहुॅदिशि पवन बहे,कोंपल मुकुल जगी है।1। पवन बहे सुखदाई,ऑचल बहॅक रहा,नयन रहे अकुलाई।2। नव विकास की राहें,नित त्याग मॉगतीं,खुशी भरी हों बॉहें।3। तुमको … Read More