मॉ की याद बहुत आती है | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

मॉ की याद बहुत आती है,आकर मुझे रुला जाती है। तब तो इतना ज्ञान नहीं था,शर्म नहीं अभिमान नहीं था।सूखे – गीले जैसे भी थे,मैं कोई भगवान नहीं था।बड़े चाव … Read More

दुर्मिल सवैया | हनुमान कृपा कर कष्ट हरो | बाबा कल्पनेश

दुर्मिल सवैया विधान-112×8 हनुमान कृपा कर कष्ट हरो , लकवा मन में अति पीर भरे।असहाय दुखी दिन दून हुआ , लख लें दृग में अति नीर भरे।।तुमसे बलवान नहीं जग … Read More

तुमने प्रियवर समझा होता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

इन अधरों की प्यास कभी,तुमने प्रियवर समझा होता।मृदुल तुम्हारी अलकों में,मेरा हाथ महकता होता।टेक। मन का भॅवरा खो जाता,बलखाती तेरी ऑखों में।कदम भटकते ही रहते,नित निर्जन सूनी राहों में।सॅझवाती का … Read More

श्रमिक दिवस पर कविता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश

श्रम- स्वेद-कण से वह नहाता।सब धूप-छॉव भी सह जाता।।निज की इच्छा नहीं बताता।हॅस कर सबका भार उठाता। धन्य मनुज मजदूर कहाता।मस्त मुदित मन साथ निभाता।।सदा सृजन रत उनको देखा।लुप्त हाथ … Read More

मतदाता जागो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

बजी दुन्दुभी फिर चुनाव की,मतदाता जागो।संविधान सम्मत अपना तुम,सारा हक मॉगो।टेक। राजनीति के सफल खिलाड़ी,ऑसू भी घड़ियाली हैं,खद्दर पहन बने छैला ये,बॉट रहे हरियाली हैं।नहीं तुम्हारी चिन्ता इनको,सीमा तुम लॉघो।बजी … Read More

ज़िन्दगी आसान तो भी नही थी | पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’

ज़िन्दगी आसान तो भी नही थी।लिखती रहीफाड़ती रहीबहुत सारे शब्द हवाओं में उड़े।जरूर बतियाए होंगे मेरे बारे में। वो चिमनी की काॅंपती लौ भीकुछ तो सोचती रही होगी,जब उसको हाथों … Read More

मंगलमय संवत्सर होगा | नये वर्ष का अभिनन्दन | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

1.मंगलमय संवत्सर होगा मंगलमय संवत्सर होगा,स्नेह लुटाता दिनकर होगा।पुलक थिरकती कण-कण धरती,मधुमय जीवन रूचिकर होगा।टेक। शस्य-श्यामला पावन भू पर,बासन्तिक अनुराग मिलेगा,कोंपल-कोंपल कलिका महके,मलयज फाग-सुहाग मिलेगा।वन-उपवन नव फुनगी महके,गीत बसन्ती मधु … Read More

होली गीत : लाल हरा रंग नीला पीला,लेकर आई होली |दुर्गा शंकर वर्मा ‘दुर्गेश’

होली गीत लाल हरा रंग नीला पीला,लेकर आई होली।होली गीत सुनाती आई,फगुहारों की टोली।ढोल,मंजीरा,झांझ लिए,सब होली गीत सुनावें।सुंदर-सुंदर गीत सभी के,मन को खूब लुभावें।सब के सब मस्ती में डूबे,छाने भांग … Read More

ऑचल बहॅक रहा | नींद नयन ना आई | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

माहिया/टप्पा छन्द1.ऑचल बहॅक रहा देखो आग लगी है,चहुॅदिशि पवन बहे,कोंपल मुकुल जगी है।1। पवन बहे सुखदाई,ऑचल बहॅक रहा,नयन रहे अकुलाई।2। नव विकास की राहें,नित त्याग मॉगतीं,खुशी भरी हों बॉहें।3। तुमको … Read More

बूढ़े बाबा | सम्पूर्णानंद मिश्र

बूढ़े बाबा नहीं हूं वहां मैंजहां ढूंढ़ा जा रहा है मुझे था कभी वहां मैंउस दालान मेंबूढ़े बाबा के पासजहां इंसान पनही से नहींअपने आचरण से जोखा जाता था जहां … Read More

‘इस बार फागुन में’ | रश्मि ‘लहर’

‘इस बार फागुन में’ खिला टेसू, पलक भीगी ,सखी! इस बार कानन में।चुनरिया भी बुलाती है;मिलो इस बार फागुन में।। हुए किसलय ये प्यासे हैं,कपोलों को तनिक देखो!कली गाने लगी … Read More

एक बासंती गीत | फिर से बसंत आया | नरेन्द्र सिंह बघेल

है ज़र्द -ज़र्द मौसम ,और मौसमी हवाएं ।इस प्यार के सफर में ,हम तेरे गीत गाएं ।।फिर से बसंत आया ,सूनी है अमराई ।तुम बिन गुजर गयी शब ,फिर याद … Read More

माँ शारदे वर दे | प्रतिभा इन्दु

शारदे वर दे मुझेमाँ शारदे वर दे ! है गहन पसरा अंधेरा ,दूर है अबतक सवेरा ,हो गई खुशियाँ तिरोहितपास है मातम घनेरा ।ज्ञान की उज्ज्वल किरण सेअर्श प्रखर भर … Read More

साथ कुछ पल | शैलेन्द्र कुमार

प्रीति भरी बातों के कुछ पलप्रतीक्षारत मुलाकातों के कुछ पलभंगिमाओं के, भावों के कुछ पलरिक्तता के, आभावों के कुछ पलअधिकार भरे मानों के कुछ पलस्वप्न भरे अरमानों के कुछ पलतुम्हारे … Read More

सभ्यता की कमीज़ | सम्पूर्णानन्द मिश्र की नई कविताएँ

सभ्यता की कमीज़ | सम्पूर्णानन्द मिश्र की नई कविताएँ नहीं लगता मुझेतुम एक मुक्कमल आदमी हो! क्योंकिसभ्यता की तुम्हारी कमीज़राजधानी की खूंटियों परअब भी टंगी हुई है तुम्हारे विवेक का … Read More