चान्द्रायण छंद | मत्तगयंद सवैया | बाबा कल्पनेश
1.चान्द्रायण छंद मानव का धन ज्ञान,शास्त्र कहते यही।करना जग उपकार,सुखी होती मही।।देना नित-प्रति दान,नदी ज्यों नीर दे।खेकर अपनी नाव,गुहा ज्यों तीर दे।। मानव का धन सार,धैर्य धरते चलो।गुरुपद रज ले … Read More