चान्द्रायण छंद | मत्तगयंद सवैया | बाबा कल्पनेश

1.चान्द्रायण छंद मानव का धन ज्ञान,शास्त्र कहते यही।करना जग उपकार,सुखी होती मही।।देना नित-प्रति दान,नदी ज्यों नीर दे।खेकर अपनी नाव,गुहा ज्यों तीर दे।। मानव का धन सार,धैर्य धरते चलो।गुरुपद रज ले … Read More

लड़कों की जिंदगी /अभिमन्यु पाल आलोचक

लड़कों की जिंदगी जमाने के मुताबिक सांसो को चलाना पड़ता है,दिल की ख्वाहिशों को दिल में ही दफनाना पड़ता है,आंसुओं को कभी रुमाल से तो कभी मुंह धोकर छुपाना पड़ता … Read More

मुझको ही छलते आये। आज की कविता

मुझको ही छलते आये। आज की कविता दे-दे करके मुझे नसीहत,मुझको ही छलते आये,नहीं किसी ने राह दिखायी,जिस पर हम चलते आये।टेक। धूप-छॉव सब सहती माटी,नहीं कभी कुछ कहती माटी,ऋतुओं … Read More

तरकारी में महक सोंधी सी | माँ पर कविता

माँ तरकारी में महक सोंधी सी,माँ तुम कैसे लाती थी।दाल बहुत मीठी लगती थी,कैसे छौंक लगाती थी। चूल्हा था वो लकड़ी वाला,और बटोली पीतल की ।रोज सबेरे धरी पलट कर,रोज … Read More

माॅं जब मैं मिलने आऊंगी। पुष्पा श्रीवास्तव “शैली”

माॅं जब मैं मिलने आऊंगी। माँ जब मैं मिलने आऊॅंगी,मुझको गले लगा लेना।उलझे हुए मेरे बालों को ,तुम पहले सुलझा देना। जाने कितने दिनों से अम्मा,प्यारी नींद नहीं आई।भूल गई … Read More

Poem about Mother in Hindi | Maa Par Kavita in Hindi | माँ पर कविता

Poem about Mother in Hindi | Maa Par Kavita in Hindi | माँ पर कविता मांजिसके साथजुड़े होते है छोटे छोटे किस्से, …. रात भरगोद में लोरी सुनना,घुटनों चलने परमां … Read More

अब आओ न पापा | कल्पना अवस्थी की कविता

अब आओ न पापा थक गई हूँ चलते चलते, अब गोद में उठाओ न पापातरस गई हूँ प्यार के लिए इक बार गले लगाओ न पापामन तरस कर रह गया … Read More

तेरा मेरा नाता | आशा शैली | हिंदी कविता

तेरा मेरा नाता नदी नीर के नाते जैसा, तेरा मेरा नातातुझे पकड़ने दौडूँ मैं पर तू ओझल हो जाता परछाईं सूरज से मिलकर जैसे सब को छलतीतेरी मेरी लुकाछिपी भी … Read More

हितकारी हर बुद्धि विमल हो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

हितकारी हर बुद्धि विमल हो। गिरजाघर,गुरुद्वारा जाकर,मन्दिर,मस्जिद दौड़ लगाकर,मन को शान्ति नहीं मिल पाई,चौखट-चौखट दीप जलाकर । टेक। सतरंगी परिधान रुपहले,सपनों के वे महल-दुमहले,तेरी सुधि की अमराई में,भटके कदम चले … Read More

समसामयिक रचना | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ | माटी वाले घर

1 . जल रही धरा,रो रहा गगन अब ऐसा कुछ कर दो प्रभुवर,प्रसरित हो सुख-शान्ति धरा पर।1। अहम्-वहम् सब दोष मिटा दो,नित जन-जन पर हो करुण-नजर।2। जल रही धरा रो … Read More

दुविधा / डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

दुविधा अथाह बलकिस काम काजिसकी खुली आंखेंधर्म की ध्वजा फटतेदेखती रहींरक्षार्थ चीखती रहीएक स्त्री की आत्मातब वह विवशता का मनहूसगीत गाता रहाशोभित होता हैऐसा पुरुषार्थ सिर्फ़ और सिर्फ़ दर्पण मेंशरशैय्या … Read More

तपिश की अनुभूतियों के कुछ दोहे : नरेंद्र सिंह बघेल

तपिश की अनुभूतियों के कुछ दोहे : नरेंद्र सिंह बघेल सूरज की ऐसी तपिश,देखी पहली बार ।भुवन भाष्कर क्रोध में,करते यह व्यवहार ।।1।। प्रकृति के इस तंत्र को,हमने दिया निचोड़ … Read More

शंखनाद | हत्यारा | हूबनाथ

शंखनाद पूर्णसत्य तोयुधिष्ठिर भी नहीं चाहते थेजिन्हें माना जाता थासत्यनिष्ठ वे राज़ी थेसुविधाजनक सत्य पर सत्यसुविधाजनक होतो आसानी सेबदला जा सकता हैअसत्य से सत्यछिपाया जा सकता हैशंख बजाकरघड़ियालनगाड़े बजाकर उसके … Read More

पलायन | दर्पण | Hindi kavita | अभिमन्यु पाल आलोचक

पलायन | दर्पण | Hindi kavita | अभिमन्यु पाल आलोचक 1. पलायन मैं छोंड़ आया वो शांत गाँवमुझको शहरों का शोर पसंद है। स्मृति के चित्र चित पर छपकरपीड़ित मन … Read More

रश्मि लहर की कविताएँ | हिंदीं कविता

१. सप्तर्षि का कंगन पहने सप्तर्षि का कंगन पहनेअंबर कुछ मुस्काता है। धीमे-धीमे, सॅंवर-सॅंवर करचंद्र किरण बिखराता है।। धूप पूजती पाॅंव धरा केजलधि प्रणाम सुहाता है।। डोल-डोल कर मलय प्रफुल्लितसरगम … Read More