प्रदीप ‘प्यारे’ के मुक्तक | हिंदी कविता | उर्दू शायरी
प्रदीप ‘प्यारे’ के मुक्तक | हिंदी कविता | उर्दू शायरी तुमने ही वक़्त पे नहीं आनातुमने ही वक़्त मांगा हुआ है। था सिलसिला अभी शुरु हीतुमको छोड़कर जाना हुआ है … Read More
प्रदीप ‘प्यारे’ के मुक्तक | हिंदी कविता | उर्दू शायरी तुमने ही वक़्त पे नहीं आनातुमने ही वक़्त मांगा हुआ है। था सिलसिला अभी शुरु हीतुमको छोड़कर जाना हुआ है … Read More
प्रिय कवि धूमिल के जन्मदिन पर | हूबनाथ | कवि धूमिल प्रिय कवि धूमिल के जन्मदिन पर कविताजलते हुए जंगल मेंहरी दूब है! बेदर्दी से नोंचकर खेत सेजो फेंका गयावह … Read More
लिव -इन -रिलेशनशिप का रियेलटी चेक | हिंदी गीत | नरेंद्र सिंह बघेल तुम यौवन का प्यार न बेचो तुम यौवन का प्यार न बेचो ।सावन के श्रंगार न बेचो … Read More
वसुधैव कुटुंबकम् / हूबनाथ हमारी बस्तियाँभले पक्की हो गई हैं घरों में बन गएशौचालयतुम्हारे घरों की तरह हमारे कपड़ेतुम्हारी तरह साफ़सुथरे हो गए हमें भी मिलने लगीदो वक़्त की रोटीभरपेट … Read More
पॉव भटक न जायें सुन तू / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’ कॉटों भरी डगर जीवन की,जिस पर तुझको चलना है,पॉव भटक न जायें सुन तू,प्यारी मेरी ललना है। टेक। तुझे पता … Read More
तुम्हारी तोतली बोली / पुष्पा श्रीवास्तव शैली तुम्हारी तोतली बोलीजब धीरे धीरे बदलने लगीसाफ आवाज में ,तब भी मैं डरी।तुम्हारे नन्हे कदम जबबिना मेरे सधने लगेतब भी मैं डरी।तुम्हारी आंखों … Read More
गुन्जन अक्षुष्ण जिसका सर्वथा,मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूं,! प्रवाह,पावन पवन का ,मुझमें समाया,कृति समर्थ,रविदाह ने मुझको तपाया,मुझमें समाहित,नीरवत निर्मल तरलता,मुझको सुलभ है व्योमवत ,इक क्षत्रता, जिससे सरस जीव जीवन,सुहृद … Read More
सजलकौन हवाओं से पूछेगा, पल-पल प्रियवर याद तुम्हारी,तड़पा जाती है,गुलशन के हर गुल-ओ-खार को,महका जाती है।1। राख हुए जंगल सी बस,अपनी राम-कहानी,दो पल रुककर पागल मन को,समझा जाती है।2। तन्हॉ … Read More
विमुख / सम्पूर्णानंद मिश्र सत्य से विमुख व्यक्तिफोटो की तरफ़ भागता हैक्योंकिभीतर अपने अमा लेता हैफोटोपेट के पाप कोऔरनिष्पाप चेहरादिखाता है समाज कोवैसे आजकलएक चेहरे सेजीवन जीनापानी पर लकीरें खींचना … Read More
जब जागता श्री संत हो विषय-जब जागता श्री संत हो छंद-मधुमालती अब रात की वेला मुई।यह प्रात की वेला हुई।भरती महक है घ्राण में।संचार शुभ है प्राण में।। अब जागिए … Read More
विवशता संवादके लिए माध्यमबहुत जरूरी होता हैलेकिनजब माध्यम हीपक्षपात के ऐनक सेघटनाओं कोदेखने- सुनने और अभिव्यक्तकरने लगेतोनहीं कोई रोक सकता हैलाक्षागृह मेंआग लगने सेइसलिएझूठ और कपट के शोर मेंयदि सत्य … Read More
बहुरूपिया समाज /सम्पूर्णानंद मिश्र बहुरूपिया समाज अपशकुनमानी जाती हैंस्त्रियांअगर वैधव्यका काला धब्बाउनके माथे पर होचूड़ियां तकतोड़वा दी जाती हैंदूर बैठायी जाती हैंधार्मिक और शुभक्रिया कर्मों के अवसर परअपमान और जलालतकी … Read More
पत्र की व्यथा/ सम्पूर्णानंद मिश्र पत्र अपनी व्यथासुना रहा थाअतीत के सुखद दिनकी गाथा गा रहा थालोग दिल की बात पत्रपर लिख जाते थेप्यार की बातें कह जाते थेमहीनों पोस्टआफिसके … Read More
मृत्यु के बाद / सम्पूर्णानंद मिश्र लेकर जाती हैऔरत अपनी मृत्यु के बादघर की समृद्धिबच्चों का बचपनबेटियों का अल्हड़पनघर की दीवारों की मुस्कुराहटचौखट की गोपनीयताखिड़कियों की रौशनीचूल्हे- चौकों की मर्यादाआंगन … Read More
पुष्पा श्रीवास्तव शैली की कविता | बौने स्वप्न | बुझता है दीप अंबे ज्ञान का प्रखर देखो बौने स्वप्न हमने बोए कुछ स्वप्न,कुछ उगे,बढ़ेऔर कुछ बौने रह गए।बौने रह गए … Read More