देख लो आम के बौर को बेटियों | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

देख लो आम के बौर को बेटियों देख लो आम के बौर को बेटियों,और पगडंडी की दूब पर बैठ लो।कूक कोयल की समझो जरा ध्यान से,आम महुए से बतियाते आराम … Read More

बदनसीबी | संपूर्णानंद मिश्र

बदनसीबी बदनसीबी जब आती हैअपना ही मुंह बिराती है बदनसीबी की मारीउस बेटी कीआंखें जब खुलीतब गंदीबस्तियां स्वागत मेंखड़ी थी उसके एक गहन अंधेरे मेंबदनसीब बच्चीभविष्य का असफलउजाला ढूंढ़ रही … Read More

अर्चना | सम्पूर्णानंद मिश्र

अर्चना | सम्पूर्णानंद मिश्र अर्चनाकीअभिव्यक्तिगूंगे के मीठे फल जैसा है जिसकारसास्वादन सिर्फ़ किया जा सकता हैवर्णन नहीं जीवन मेंउनकीअर्चना होनी चाहिए अवश्य जोत्याग के धागेऔर समर्पण की सूईसे संबंधों के … Read More

कान्हा के संग प्रीत | छंद | नरेंद्र सिंह बघेल

कान्हा के संग प्रीत | छंद | नरेंद्र सिंह बघेल कान्हा के संग प्रीत के गीत की ,नीति की रीति सिखा गई राधा ।हाँथ पकर बरजोरी करैं जब ,हार के … Read More

रिश्तों से हलकान मिला | रश्मि लहर

रिश्तों से हलकान मिला | रश्मि लहर रिश्तों से हलकान मिलाटुकड़ों बॅंटा मकान मिला हर पग पर तूफ़ान मिलासफर कहाॅं आसान मिला न थीं निभाने की कसमेंप्रेम गुॅंथा अनुमान मिला … Read More

सांवले कदम | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

सांवले कदम | पुष्पा श्रीवास्तव शैली कड़कड़ाती ठंड मेंमैंने देखा उन नन्हे नन्हे सांवलेक़दमों को प्लेटफॉर्म पर दौड़ते हुए,जो शायद सर्दी कोया हम सबको जो अपने आप को उपर से … Read More

नगरवधू | सम्पूर्णानंद मिश्र

नगरवधू आम्रपालीतुम बहुत सुंदर थीयही तुम्हारा कसूर थाइसलिएतुम्हारे सौंदर्य का पान करने के लिएवैशाली और मगध निरंतर लड़ते रहेएक बार नहींसौ बार फाड़ी गई मर्यादा की चादरपिता- पुत्र के द्वाराप्रतिद्वंद्वी … Read More

परीक्षा पर व्यंग्यात्मक कविता | Poem on Exam in Hindi – परीक्षा पर कविता

परीक्षा पर व्यंग्यात्मक कविता | Poem on Exam in Hindi – परीक्षा पर कविता परीक्षा बोर्ड परीक्षा मेंएक परीक्षार्थी ‌नकल‌करते हुए पकड़ा गया ‌बहुत रोया‌ चिल्लायाअपने तर्क सेजिला विद्यालय निरीक्षकसे … Read More

नसीहत | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता

नसीहत | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता पिता ने ‌पुत्र को‌नसीहत देते हुएकहा कि बेटाजिंदगी में पानी की तरहमत बहनासपाट‌ जीवन मत जीनारुकावटें आएंगीतुम्हें विचलित करजायेंगीतोड़ने ‌का प्रयास ‌किया जायेगाटूटना … Read More

सारे पथ जब बंद न्याय का | प्रतिभा इन्दु

सारे पथ जब बंद न्याय का | प्रतिभा इन्दु सारे पथ जब बंद न्याय कारण अभिशाप नहीं है ,यहां रक्त की नदियां बहतीकोरा जाप नहीं है ,मत भूलो तुम नियत … Read More

आदमी | सम्पूर्णानंद मिश्र

आदमी | सम्पूर्णानंद मिश्र आदमी आज बेचारा हैपरिस्थितियों का मारा हैमहंगाई से तंग हैसिस्टम से मोहभंग हैस्वयं से जंग हैअब जिंदगी ‌में न‌ हीकोई रंग हैन अपने अब संग हैरोज़ … Read More

रक्तचाप | सम्पूर्णानंद मिश्र

रक्तचाप | सम्पूर्णानंद मिश्र भूखका बढ़ता रक्तचापसिर्फ़शरीर के अवयव को हीनहीं नुकसान पहुंचाता हैबल्कि क्षतिग्रस्त करता हैआत्मा को भीहालांकिमुहर लगाई हैशास्त्र नेआत्मा की अमरता परलेकिनभूख की तीव्र लपटचमचमातीमहंगी गाड़ियों तक … Read More

मिलो इस बार फागुन में | रश्मि लहर

मिलो इस बार फागुन में | रश्मि लहर खिला टेसू धरा महकी मिलो इस बार फागुन में।मिलन-सुधि भी मिली बहकी, मिलो इस बार फागुन में।। हुए शाखों के रक्तिम से,कपोलों … Read More

संग हम साथ होंगे | सम्पूर्णानंद मिश्र

संग हम साथ होंगे | सम्पूर्णानंद मिश्र क्योंभाग रहे होहाथ मेरा छुड़ा रहे होमैं लेने जब आऊंगीलेकर ही जाऊंगीफिर भी भाग रहे होबाहें मेरी छुड़ा रहे होकत्ल भी करते होइल्ज़ाम … Read More

algoza bagheli kavita- चिन्ना बाबा का अलगोजा/नरेन्द्र सिंह बघेल

आज से करीब( 55_60) वर्ष पहले की बाल स्मृतियों में संचित ग्रामीण परिवेश में कृषि कार्य से संबंधित अपने घर के कुछ दृष्टि बिंबों को समेटने सहेजने का प्रयास रचना में किया गया है (algozabaghelikavita)वस्तुतः यह  यथा स्थिति का कल्पनाओं और व्यंजनाओं से अलग वस्तुस्थिति का यथार्थ चित्रण है  ।रचना में उल्लेखित भूमि पुत्रों के नाम यथावत ”       में दर्शाए गए हैं। यह रचना व्याकरण की भाषा में त्रुटियों से भरी है परंतु इसका भाव प्रवाह ही रचना का मूल स्रोत है कृपया मेरा यह लंबा वक्तव्य एवं रचना श्रेष्ठजनों, गुणीजनों, विद्वतजनों के समक्ष क्षमा के साथ सादर प्रस्तुत है ।   विशेष —–रचना में “अलगोजा”वाद्य यंत्र का उल्लेख किया गया है यह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जो दो बांसुरियों को दोनों हाथों में अलग-अलग पकड़ कर इसे मुंह में एक साथ फंसा कर एक ही फूंक से बिना रुके एक साथ दो सुरों में बजाया जाता है । शायद दुर्लभ और अद्भुत वाद्य यंत्र जो आज भी राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में लोक संस्कृति के रूप में विद्यमान है । अद्भुत कला एवं अद्भुत कलाकार हमारे घर में काम करने वाले धरतीपुत्र स्वर्गीय चिन्ना बाबा को और उनकी लोक संगीत की कला को नमन। प्रस्तुत है रचना——- चिन्ना बाबा का अलगोजा हर किसान के हर हैं कितने, उसका रुतबा बतलाते । और समाज के बीच में उसको, ऊंचा ओहदा दिलवाते  ।। सात हरन क आपन घर, होत रहा किसान । गोइंडहरे के लोग सबै जन, देत रहे सम्मान  ।। “सुरजा” “गिल्ला” “रम्मा” “चिन्ना” अउर “गैबिया ” काका । खेत जोतते टप्पा गाते, बजते ढोल-ढमाका  ।। “चिन्ना ” बब्बा” का अलगोजा, देवी पूजन में बजता । और कजलियां होरी के दिन, महफिल में भी सजता ।। “नाते ” “व्यकंट” भोर सुबह उठ, पहट चराने जाते । … Read More