महक रही यह फूल की घाटी / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
महक रही यह फूल की घाटी महक रही यह फूल की घाटी,चन्दन-वात लुटाता है,स्नेहापूरित कण-कण जिसका,भारत देश कहाता है।टेक। शस्य-श्यामला सुफला धरती,खनिजों के भण्डार भरे,मलय सुहावन सुरभि लुटाती,कण-कण नव ऋंगार … Read More